बाल - मजदूरी : समस्या

बाल मजदूरी एक अमानवीय कृत्य है बाल-मन सामान्यता अपने घर परिवार तथा आसपास की स्थिति से अपरिचित और स्वतंत्र रूप से खाना पीना और खेलना ही वह जानता है इन्हीं बातों को  समझा करता है लेकिन आज की परिस्थितियां ऐसी बन गई है जैसे छोटे-छोटे बालक मजदूरी करते हुए घरों, ढाबों और छोटे होटलों आदि में तो अक्सर मिल जाते हैं छोटे-बड़े फैक्ट्रियों के अस्वस्थ वातावरण में भी मजदूरी का बोझ ढोते हुए दिखते हैं कश्मीर का कालीन-उद्योग हो या दक्षिण भारत का माचिस एवं पटाखे बनाने वाला उद्योग तथा महाराष्ट्र,  गुजरात और बंगाल की बीड़ी-उद्योग पूरी तरह से बाल मजदूरों के श्रम पर टिका हुआ है !




 बाल मजदूरों का एक अन्य वर्ग भी है कंधे पर झूला ला दे इस वर्ग के मजदूर इधर उधर फैले हुए गंदे - फटे पॉलीथिन प्लास्टिक के बोतल एवं टूटी चप्पल-जूते उठाते हुए दिखाई देते हैं


 आखिर में बाल मजदूर आते कहां से हैं यह वही  लोग हैं जो गरीबी की  रेखा से नीचे रहने वाले घर-परिवार से आया करते हैं इस वर्ग की विवशता तो समझ  में आती है कि वह लोग मजदूरी करके अपने घर परिवार के अभाव में अपना जीवनयापन करना चाहते हैं




 भारत सरकार ने इस मुद्दे को बहुत ही गंभीरता से लिया है और कई कदम उठाए हैं फिर भी हम को संवेदनशील होने की आवश्यकता है देश का भविष्य कहे जाने वाले बच्चों-बालकों को किसी भी कारण से मजदूरी करने पड़े इससे मानवीय  नहीं कहा जा सकता है केंद्र और राज्य सरकार को समन्वय के साथ आगे बढ़कर बालकों के पालन की व्यवस्था करनी चाहिए तभी जाकर इस समस्या का समाधान संभव हो सकता है !

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Milan Tomic

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