समाज में साहित्य और विज्ञान की भूमिका

साहित्य और विज्ञान दोनों के कार्यक्षेत्र अलग-अलग प्रतीत होते हैं किंतु सत्य है कि यह दोनों ही अपने मूल उद्देश्य की दृष्टि से मानव समाज की सेवा में लगे हुए हैं दोनों का रचनात्मक उद्देश्य मानव जीवन और समाज का उत्कर्ष करना है साहित्य का सीधा संबंध भावो  और विचारों से रहा करता है उसका  विषय भी वही तत्व और तथ्य मना करते हैं कि जो भावना और विचार - क्षेत्र में आते हैं इसके विपरीत विज्ञान उन्हीं विषयों बातो और तथ्यों को अपनी धारणा विचार और प्रक्रिया का अंग बनाया करता या बन सकता है कि जिन्हें नपा तुला और छूहा भी जा सकता है दूसरे शब्दों में साहित्य का विषय मूर्त अमूर्त, दृश्य -अदृश्य सभी कुछ बन सकता है जबकि विज्ञान का आधार केवल दृश्य एवं तथ्य ही रहा करते हैं साहित्य और साहित्यकार भी कोई बात परीक्षण और अनुभव के आधार पर कहां करते हैं पर वह सब कुछ व्यवहारिकता और अनुभूति पर आधारित हुआ करता है |


 साहित्य में भावना के साथ साथ जीवन के यथार्थ के लिए भी उचित स्थान रहा करता है जबकि विज्ञान में सभी कुछ मात्र यथार्थ ही रहा करता है साहित्य में इतनी क्षमता रहती है कि वह भावना और कल्पना का पुट देखकर विज्ञान को भी अपना वर्ण - विषय बना ले जबकि  विज्ञान साहित्य को अपना वर्ण - विषय नहीं बना सकता यदि विज्ञान भी ऐसा कर सकते में कभी समर्थ हो जाए तो निश्चित ही वह दिन मानव  - जाति और समाज के लिए बड़ा ही शुभ माना जाएगा |



 इस प्रकार कहा जा सकता है कि आज साहित्य की जीवन दृष्टि विज्ञानमय हो गई है परंतु खेद के साथ कहना और स्वीकार करना पड़ता है कि विज्ञान अपने जीवन दृष्टि साहित्यमय नहीं कर सकता हमारे जीवन समाज में साहित्य और विज्ञान की भूमिका अहम है यह दिन प्रतिदिन और विकसित होते जा रहा है |

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Milan Tomic

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