मनुष्य के जीवन में विकास का मुख्य स्रोत है शिक्षा शिक्षा के बिना जीवन अधूरा है हमें जागरुक सचेत और विकास उन्मुख बनाने के लिए उत्तम व समान शिक्षा व्यवस्था बेहद जरूरी है | आज की शिक्षा पद्धति पर विचार करें तो लगता है कि विभिन्न समितियों आयोगों वह अधिवेशन ओं के गठन निर्देशन व परामर्श के बावजूद सुधार अधूरे पड़े रहते है सरकार के द्वारा शिक्षा पर बेतहाशा खर्च मनवांछित लक्ष्य प्राप्त नहीं करवा पा रहा है इसका स्पष्ट कारण यह दिखता है कि सत्तासीन सरकारे प्रयोगों पर ही दिलचस्पी लेती है आज शिक्षा प्रणाली दो राहो पर खड़ी है शिक्ष सौदा बन गई है धन कुबेर अपरिमित दौलत के बल पर महँगी शिक्षा क्रम कर रहे हैं और अच्छे-अच्छे पद भी हथिया ले रहे हैं | बेतहाशा पैसों की लूट करने वाले प्राइवेट स्कूल बड़ी चालाकी से पैसे ऐंठने में सफल व सक्षम हो रहे हैं दूसरी तरफ गरीब मजदूर किसान मध्यमवर्ग सरकारी स्कूलों की तरफ रुख करते हैं जो स्वयं अव्यवस्थाओं के शिकार हैं सरकारी विद्यालयों की दुर्दशा जगजाहिर है बहुस सरकारी विद्यालयों की दुर्दशा जगजाहिर है बहुसंख्यक बच्चों की अनदेखी हो रही है जिससे वे सामान्य जीवन निर्वाह के योग्य भी नहीं बन पा रहे है बहुसंख्यक बच्चों की अनदेखी हो रही है जिससे वे सामान्य जीवन-निर्वाह के योग्य भी नहीं बन पा रहे हैं इससे यह स्पष्ट होता है कि हमारे नेता जनप्रतिनिधि समाधान मे रूचि नहीं ले रहे हैं यदि सही मायनों में इस दिशा में सुधार का विचार होता तो इन प्राइवेट शिक्षक की दुकानों को बंद कर के सरकारी विद्यालयों की अवस्थापना उनकी दशा दिशा में सुधार पर सार्थक प्रयास होता, सरकार ने कई समिति आयोग का गठन किया लेकिन फिर भी शिक्षा के क्षेत्र में कोई सुधार नहीं हुआ यह एक अत्यंत अनुकरणीय और विचारणीय विषय है |
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